बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलता है।
प्रतापगढ़ लेख (946 ई०) : स्थल प्रतापगढ़ (चित्तौड़)। विषय : इस लेख से भर्तृभट्ट II के बारे में जानकारी मिलती है।
आहड़ आमलख (977 ई०) स्थल : आहड़ । विषय इस अभिलेख से मेवाड़ के शासकों अल्लट, नरवाहन तथा शक्ति कुमार के बारे में जानकारी मिलती है।
ओसियां शिलालेख (956 ई०) स्थल : ओसियां (जोधपुर) विषय इस अभिलेख से वत्सराज के बारे में जानकारी मिलती है।
- चित्रकला
झालरापाटन लेख (1086 ई०) : स्थल : सर्वसुखिया कोटी झालरापाटन विषय इस लेख में राजा उदयादित्य का उल्लेख मिलता है।
- चित्रकला शैली
चित्रकला की दृष्टि से राजस्थान अत्यन्त ही समृद्ध राज्य माना जाता है। राजस्थान राज्य में विकसित चित्रकला शैली को राजपूतकालीन चित्रकला शैली कहा जाता है। राजपूतकालीन चित्रकला में निम्नलिखित शैलियां आती हैं-
- बूंदी शैली यह राजपूतकालीन चित्रकला शैली 17वीं शताब्दी में विकसित हुई। इसकी विशेषता रंगों का प्रयोग एवं विजयी दृश्यों का चित्रण है। रागमाला, बारहमासा, रसिक प्रमुख प्रिया एवं आखेट के दृश्य इस चित्रकला शैली के प्रमुख दृश्य हैं। इस चित्रकला शैली के चित्रकारों में रामलाल, सुरजन, अहमद अली, श्रीकृष्ण आदि प्रमुख हैं।
- मेवाड़ी शैली यह राजपूतकालीन चित्रकला शैली भी 17वीं शताब्दी में विकसित हुई। महाराणा अमर सिंह के शासन काल में इस चित्रकला शैली का काफी विकास हुआ। लाल एवं पीले रंगों का अधिक प्रभाव, मौन नेत्र, लंबी नासिका, छोटी ठोड़ी, नायक के कान के नीचे गहरे रंग का प्रयोग आदि इस शैली के चित्रों की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं। महाभारत, रामायण, रागमाला, बारहमासा, रसिक प्रिया, बिहारी सतसई, पृथ्वीराज रासो आदि इस चित्रकला शैली के कुछ प्रमुख चित्र है। इस चित्रकला शैली के चित्रकारों में मनोहर, गंगाराम, कृपाराम, साहिबदीन,
भैरोराम, जगन्नाथ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 3. बीकानेरी शैली–यह चित्रकला शैली महाराजा अनूप सिंहजी के समय में अपने वास्तविक रूप में प्रकाश में आयी। इस राजपूतकालीन चित्रकला शैली पर मुगल चित्रकला शैली। का अत्यधिक प्रभाव दिखाई देता है।
- किशनगढ़ शैली – यह राजपूतकालीन चित्रकला की एक अत्यन्त ही आकर्षक शैली है। इस चित्रकला शैली का सर्वाधिक विकास राजा नगरीदास जी के समय में हुआ। उभरी हुई ठोड़ी, तोते की सुन्दर नासिका, गुलाबी अदा, अर्द्धचन्द्राकार नेत्र, धनुषाकार सुरम्य सरोवरों का अंकन इस चित्रकला शैली के चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ हैं। ‘बनी-ठनी’ इस चित्रकला शैली की सर्वोत्तम कृति है जिसे ‘भारतीय चित्रकला का मोनालिसा’ भी कहा जाता है। इस चित्रकला शैली के चित्रकारों में अमीरचन्द, निहाल चन्द, धुन्ना आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
- जयपुर शैली- इस चित्रकला शैली का काल 1600 ई० से 1700 ई० तक माना जाता है। राजा सवाई जयसिंह के शासनकाल में इस चित्रकला शैली का सबसे अधिक विकास हुआ। बीकानेरी शैली की तरह इस चित्रकला शैली पर भी मुगल चित्रकला का प्रभाव स्पष्ट तौर पर दृष्टिगोचर होता है। इस चित्रकला शैली में पुरुषों को बलिष्ठ एवं महिलाओं को साथ दर्शाया गया है, जो इस शैली की एक प्रमुख विशेषता है।
- 6. मारवाड़ी शैली – यह राजपूतकालीन चित्रकला शैली 17वीं शताब्दी में पनपी लेकिन इसका वास्तविक विकास सही अर्थों में 18वीं शताब्दी के दौरान हुआ। गोल वादलों का अंकन, कमल नयनों का अंकन, बालों का घुमाव आदि इस शैली के चित्रों की प्रमुख विशेषताएं हैं। इस चित्रकला शैली के चित्रकारों में भाटी देवदास भाटी शिवदास भाटी किशनदास आदि प्रमुख हैं। 7. अलवर शैली यह राजपूतकालीन चित्रकला शैली मुगल शैली एवं जयपुरी शैली का
- मिश्रित रूप है।
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