राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 1

राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 1 

    गहलोत राजवंश का मूल पुरुष गुहिल नामक व्यक्ति था |

      गुहिल के वंशज नाग जिन्हें  नागादित्य के नाम से जाना जाता है, नागदा की स्थापना की और नागदा को राजधानी के रूप में स्थापित किया था |

        गोहिल के वंशज आगे चलकर काल भोज नामक शासक (महेंद्र द्वितीय का पुत्र) जिसे राजस्थान के इतिहास में बप्पा रावल या बप्पा के नाम से जाना जाता है |

          बप्पा रावल ने हरित ऋषि के आशीर्वाद से अपने राज्य का विस्तार किया और 734 ई. में ने राजा मान मोरी (मौर्य) को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार किया |

            बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण करवाया |

              बप्पा रावल ने चित्तौड़गड़ के विजय के उपलक्ष में रावल की उपाधि धारण की थी |

                चित्तौड़ का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया था

                  बप्पा रावल के बाद  के सभी मेवाड़ के शासक एकलिंग जी को मेवाड़ का स्वामी और अपने आप को उस का दीवान मानकर शासन करते थे गोहिल के वंश मैं आगे चलकर (13वा  शासन) खुमान दित्य हुआ जिसके बारे में जानकारी  दलपत विजय (दौलत विजय )द्वारा लिखित ग्रंथ खुमान रासो से मिलती है

                    खुमान द्वितीय के शासनकाल में बगदाद के शासक में मुसलमानों के खलीफा अल मासु का चित्तौड़ पर आक्रमण हुआ (823-843 ई . में ) यह चित्तौड़ का पहला विदेशी आक्रमण था और इस युद्ध में अल मासू पराजित हो गया  और वापस लोट गया |

                      गोहिल के वंश में जैत्र सिंह (1213- 1252ई. में ) प्रसिद्ध शासक हुआ जिसके समय में दिल्ली के सुल्तान  इल्तुतमिश ने नागदा पर आक्रमण किया और नागदा को नष्ट किया , परंतु उसे पराजित होकर लौटना पड़ा |

                        जैत्र सिंह ने नागदा के बजाए चित्तोड़गड़  को अपनी राजधानी बनाया( पहली बार चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाने वाला जैत्र सिंह था)

                          जैत्र सिंह के शासनकाल में ही 1248 में दिल्ली के सुल्तान नासिरुद्दीन मुहम्मद ने मेवाड़ पर आक्रमण किया परंतु उसे भी पराजित होकर लौटना पड़ा

                            जैत्र सिंह के दो प्रसिद्ध सेना अधिकारी थे जिसके नाम हैं बालक और मदन जिसकी सहायता से उसने अपने राज्य का विस्तार किया

                              रावल रतन सिंह (1302-1303ई . में) की रानी पद्मावती थी, अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण की जानकारी मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखित पद्मावत (1540 शेरशाह सूरी), अमीर खुसरो द्वारा लिखित ग्रंथ खुजाइन उल फुतुह से प्राप्त होती है।

                                पद्मिनी सिंहल द्वीप (श्री लंका )के राजा गंधर्व सेन की पुत्री थी |

                                  अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती को प्राप्त करने के लिए 1303 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया (तात्कालिक कारण) |

                                    गोरा और बादल लाउद्दीन खिलजी की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए |

                                      गोरा बादल के महल चित्तौड़ में स्थित है |

                                        गोरा बादल स्टेडियम चित्तौड़ शहर में स्थित है,

                                          अलाउदीन खिलजी के चितोड़ पर  आक्रमण के बाद रानी पद्मावती ने सभी राजपूत स्त्रियों के साथ जोहर किया , 1303 में जो चित्तौड़ का पहला जौहर हुआ था

                                            अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खां को  चित्तौड़गढ़ का प्रशासन नियुक्त किया और चित्तौड़गढ़ का नाम बदलकर खिजराबाद रखा |

                                              मालदेव सोनगरा (कान्हड़देव का भाई) को राजस्थान के इतिहास में मुछाला मालदेव के नाम से जाना जाता है |

                                                सिसोदे गांव के हम्मीर ने जेतसी  को पराजित करके 1326 में चित्तौड़ पर फिर से अधिकार स्थापित किया था इसलिए हम्मीर को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है |

                                                  हम्मीर  ने चित्तौड़गढ़ में अपना राज्यभिषेक करवाया और महाराणा की उपाधि धारण की थी हम्मीर  ने अपनी कुल देवी अन्नपूर्णा देवी का मंदिर बनवाया |

                                                    कुंभलगढ़ प्रशस्ति में हम्मीर  को  विषमघाटी पंचानन कहा जाता है

                                                      क्षेत्र सिंह के शासनकाल (1364 -1382 ई)

                                                        से ही मालवा मेवाड़ संघर्ष की शुरुआत हुई थी और क्षेत्र सिंह ने मालवा के शासक दिलावर खान गौरी को पराजित किया था

                                                          लक्ष्य सिंह के शासनकाल (1382-1421ई) में ही जवार की खान (उदयपुर में)का पता चला था जिसे मेवाड़ की आर्थिक समृद्धि हुई

                                                            लक्ष्य सिंह के शासनकाल में ही एक बंजारे ने (लक्खी बंजारा) पिछोला झील का निर्माण करवाया

                                                              राव चूड़ा का बड़ा पुत्र रणमल था

                                                                मारवाड़ के शासक राव चूड़ा ने अपनी पुत्री मनसा बाई का विवाह महाराणा लाखा के साथ किया था जिनका पुत्र मोकल था।

                                                                  चुड़ा ने  अपने राज्य अधिकार का त्याग किया था इसलिए चुडा को राजस्थान के इतिहास में भीष्म पितामह कहा जाता है

                                                                    महाराणा लाखा ने चुडा को सलूंबर की जागीर प्रदान की और हमेशा के लिए यह प्रावधान किया कि चुंडा और उनके  वंशज महाराणा के द्वारा जारी पट्टे और परवानों पर भाले का निशान अंकित करेंगे तभी तो मान्य होगा और भिंडर  सही का निशान लगायेगा

                                                                      राजा भोज ने चित्तौड़ में समिधेश्वर जी का मंदिर बनवाया इसको भोज मंदिर कहां जाता है वह मोकल का मंदिर भी कहा जाता है

                                                                        मोकल ने एक लिंग के मंदिर के चारों और परकोटे का निर्माण करवाया

                                                                          मोकल के समय मना और फना दो प्रसिद्ध शिल्पी थे

                                                                            मोकल की हत्या चाचा और मेरा ने जीलवाड़ा नामक स्थान पर की थी

                                                                              महाराणा कुंभा (1433)के शासनकाल में चुंडा ने  अपने भाई राघव देव की हत्या का बदला लेने के लिए भारमली  के सहयोग से रणमल की हत्या करवाई

                                                                                महाराणा कुंभा और मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी प्रथम के बीज 1437 इसी में सारंगपुर का युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद खिलजी को पराजय हुई और महाराणा कुंभा उन्हें बंदी बनाकर चित्तौड़ ले आये

                                                                                  इस विजय के उपलक्ष्य में महाराणा कुंभा ने चित्तौड़गढ़ में कीर्ति स्तंभ (122फिट ,9मंजिला) का निर्माण करवाया जिसे विष्णु स्तंभ भी कहा जाता है और विजय के उपलक्ष में निर्मित होने के कारण इसे विजय स्तंभ भी कहा जाता है

                                                                                    जैन विजय स्तंभ  (75फिट)स्तंभ सात मंजिला है

                                                                                      गुजरात के सुल्तान कुतुबुद्दीन और मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी प्रथम के बीच 1456 ईस्वी में चंपानेर की संधि हुई थी|

                                                                                        महाराणा कुंभा की विभिन्न उपलब्धियों का उल्लेख मिलता है जैसे राजगुरु ,हाल गुरु, छाप गुरु ,दान गुरु हिंदू सुरताण|

                                                                                          महाराणा  कुम्भा की संगीत में उनकी विशेष रुचि थी वह संगीत का ज्ञाता थे , कुंभा को अभिनव भद्राचार्य कहा जाता था|

                                                                                            कुंभा ने संगीतराज संगीत मीमांसा शोध प्रबंध नामक ग्रंथों की रचना की  , तथा गीत गोविंद पर रसिक प्रिया टीका लिखी|

                                                                                              कुंभा ने कुंभलगढ़, अचलगढ़, बसंती दुर्ग आदि प्रसिद्ध किलों का निर्माण करवाया |

                                                                                                मेवाड़ में 84 किले हैं जिनमें से 32 किलो का निर्माण कुंभा ने करवाया

                                                                                                  कुंभलगढ़ की दीवार 3600 किलोमीटर लंबी है तथा चौड़ाई इतनी है कि चार घोड़े एक साथ चल सकते हैं

                                                                                                    कुंभा ने कुंभलगढ़ अचलगढ़ और चित्तौड़गढ़ में कुंभ स्वामी (कुंभश्याम)के मंदिर का निर्माण करवाया

                                                                                                      कुंभलगढ़ का निर्माण कुंभा के प्रसिद्ध शिल्पी मंडन  की देखरेख में हुआ था|

                                                                                                        कुंभा के शिल्पी मंडन के रूपमंडल, प्रसादमंडल, राज्यवल्लभ मंडल, देव मूर्ति प्रकरण, वास्तुमंडल आदि ग्रंथों की रचना की

                                                                                                          कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति के रचयिता कविअत्री और महेश थे |

                                                                                                            महाराणा कुंभा के शासनकाल में एकलिंग महात्म्य की रचना कान्हा व्यास ने की थी उनके समय में प्रसिद्ध जैन विद्वान सोम सुंदर, मुनि सुंदर ,जयचंद सूरी,सुंदरसूरी आदि रहे है

                                                                                                              महाराणा कुंभा की हत्या उनके जेष्ट पुत्र उदा ने कुंभलगढ़ में मामा देव कुंड के पास की थी

                                                                                                                उदा ने  1468 इसी में शासन प्राप्त किया वह 1473 तक शासन किया |


                                                                                                                राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 2

                                                                                                                राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 3 

                                                                                                                 

                                                                                                                 

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