राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 2

राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 2


रायमल का शासनकाल 1473 से 1509

    महाराणा रायमल के जीवन काल में उनके पुत्रों पृथ्वीराज जयमल और संग्राम सिंह के बीच उत्तर अधिकारी संघर्ष छिड़ गया था

      पृथ्वीराज जिसे उड़ना राजकुमार (उड़ना राजकुमार  दोनों हाथों में तलवार लेकर तेजी से लड़ने के कारण उसे उड़ना  राजकुमार कहा जाता था  )नाम से भी जाना जाता है

        अजमेर में तारागढ़ का निर्माण पृथ्वीराज (गहलोत राजवंश )ने करवाया

          पृथ्वीराज की मृत्यु जहरीले लड्डू खाने से हुई थी

            महाराणा सांगा (संग्राम सिंह )की प्रमुख उपलब्धि है राजपूत शासकों का एक परिसंघ बनाना था

              महाराणा सांगा और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच 1517 इसी में खातोली (कोटा)का युद्ध हुआ था जिस में इब्राहिम लोदी पराजित हुआ

                1518 ई में  में इब्राहिम लोदी के सेनापति मियां मक्खन और महाराणा संग्राम के बीच बाडी (धौलपुर )में युद्ध हुआ था जिसमें महाराणा संग्राम सिंह की विजय हुई

                  1519 में मोदीनीराय के मामले को लेकर मालवा  के सुल्तान मोहम्मद खिलजी 2 और सांगा के बीच गागरोन के निकट युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गोरी की पराजय हुई और उसे बंधी बनाकर महाराणा सांगा चित्तौड़ ले आए

                    महाराणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे और खानवा के युद्ध को छोड़कर उसकी किसी भी युद्ध में पराजय नहीं हुई थी

                      1526 में पानीपत का युद्ध इब्राहिम लोदी और बाबर के मध्य हुआ

                        17 मार्च 1527 को महाराणा सांगा और बाबर के बीच खानवा का युद्ध( भरतपुर) हुआ जिसमें महाराणा सांगा की पराजय हुई

                          खानवा के युद्ध में पहली बार राजपूताना (राजस्थान) में तुलुगमा पद्धती वह तोपखाने खाने का प्रयोग हुआ था बाबर के तोपखाने का अध्यक्ष निजामुद्दीन था

                            खानवा के युद्ध में सांगा के सहयोगी सरहदी तंवर ने महाराणा सांगा के साथ विश्वासघात किया था

                              खानवा के युद्ध को बाबर ने जिहाद  धर्मयुद्ध घोषित किया था

                                खानवा के युद्ध में हसन खान मेवाती और मोहम्मद लोदी महाराणा सांगा की तरफ से लड़े थे

                                  बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा (तुजुक ए बाबरी) जो तुर्की भाषा में है उसमे महाराणा सांगा पर विश्वास घात का आरोप लगाया जो गलत सिद्ध होता है

                                    महाराणा सांगा बयाना भुसावर आदि को जीता हुआ डेढ़ महीने की देरी से खानवा के मैदान में पहुंचा और यही उनकी पराजय कारण बनी

                                      ईरीच नामक स्थान पर महाराणा सांगा के जहर से मृत्यु हुई उनका अंतिम संस्कार मांडलगढ़ में हुआ मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) पर उनका स्मारक बना हुआ है

                                        इस युद्ध के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी

                                          महाराणा सांगा का जेष्ट पुत्र भोजराज था|

                                            भोजराज का विवाह मीराबाई के साथ हुआ था , मीराबाई के गुरु संत रेदास थे

                                              मीराबाई के पिता का रतन सिंह था

                                                मीराबाई  का जन्म , कुडकी (पाली) नामक गांव में हुआ था

                                                   मीराबाई की मृत्यु दुवारिका में हुई थी,

                                                    मीराबाई का मंदिर मेड़ता, चितोड़  में बना हुआ है ,

                                                      विक्रमादित्य के शासन काल (1526-1536) में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1533 ई.  में चितोड़गढ़ पर आक्रमण  किया | जिसे कर्मवती ने धन देकर लोटाया

                                                        बहादुर शाह ने 1535  ई. में जब चितोड़गढ़   पर दूसरी बार  आक्रमण  किया इस समय रानी कर्मावती ने मुगल सम्राट  हुमायु को राखी भेजकर सहायता मांगी थी |

                                                          1535 ई. में बहादुर शाह का चितोड़गढ़ पर अधिकार हो गया रानी कर्मावती ने सभी राजपूत स्त्रियों के साथ जौहर  किया था ये चितोड़ का दूसरा साका था

                                                            बहादुर शाह और हुमायु के बीच 1535 ई . में  मंदसोर का युद्ध हुआ जिसमे बहादुरशाह पराजित हुआ

                                                              विक्रमादित्य की हत्या दासी पुत्र बनवीर ने की थी

                                                                पन्नाघाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह की रक्षा की थी

                                                                  उदयसिंह ने कुम्भलगढ़ में रहते हुवे शक्ति को संगठित किया और बनवीर को पराजित करके चितोड़गढ़ पर फिर अधिकार किया

                                                                    शेरशाह सूरी गिरी – सुमेल युद्ध (जनवरी 1544) से जब लोट रहा था तब महाराणा उदयसिंह ने चितोड़गढ़ की चाबियां उसके पर भिजवा दी थी व अधीनता स्वीकार की थी

                                                                      महाराणा उदयसिंह और मारवाड़ के शासक राव  मालदेव के बीच हाजी खां पठान की सहायता को लेकर हरमाड़ा  का युद्ध (1556) हुआ जिसमे उदयसिंह की पराजय हुई

                                                                        अकबर के आक्रमण की सुचना उदयसिंह के पुत्र शक्ति ने दी थी

                                                                          उदयसिंह ने चितोड़गढ़ की रक्षा का कार्य जयमल राठौर  और पत्ता सिसोदिया को सौपकर जंगलो में चला गया जहाँ उसने 1559 ई में एक नया नगर उदयपुर बसाया था

                                                                            चितौड़गढ़  का तीसरा जौहर , 1568 ई . में हुआ था

                                                                              उदयसिंह के शासनकाल में 1567 में अकबर का चितौड़गढ़ का आक्रमण हुआ जयमल व पत्ता इस  युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुए

                                                                                अकबर ने जयमल और पत्ता की वीरता से  प्रभावित होकर उनकी संगमरमर की मुर्तिया बनवाकर आगरा के किले के बाहर लगवायी

                                                                                  उदयसिंह ने उदयपुर के बाद गोगुन्दा को अपनी सकती का केंद बनाकर अकबर के विरुद संघर्ष किया और वही. पर उनकी  मुर्यु 1572ई में हुई , उदयसिंह का स्मारक गोगुन्दा में बना हुआ है

                                                                                    उदयसिंह  के जेष्ट  पुत्र  प्रताप का राजयाभिषेक गोगुन्दा  में हुआ 

                                                                                    राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 1 

                                                                                    राजस्थान के मेवाड़ के गहलोत राजवंश पार्ट 3 

                                                                                      Be the first to comment

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