महाराणा प्रताप
राजस्थान के इतिहास में महाराणा प्रताप एक ऐसा नाम है जिसने कभी मुगलों की अधीनता के अधीन नहीं हुए , महाराणा प्रताप के सामने से मुगल सेना के पसीने छुट जाते थे |
महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था. राणा उदय सिँह इनके पिता का नाम था.
महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में महाराणा प्रताप हमेशा दो तलवार रखते थे एक अपने लिए और दूसरी निहत्थे दुश्मन के लिए.।
प्रताप का भाला 81 किलो का और छाती का कवच का 72 किलो था. उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलो था.
महाराणा प्रताप इतने बलशाली थे , की एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।
महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं
अकबर ने महाराणा प्रताप के लिए कहा था की “ अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है, तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे, पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी “ लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा “मर जाऊँगा लेकिन मुगलों के आगे सर नही नीचा करूंगा.”
प्रताप ने मायरा की गुफा में घास की रोटी खाकर दिन गुजारे थे.
अकबर ने एक बार कहा था की अगर महाराणा प्रताप और जयमल मेड़तिया मेरे साथ होते तो हम विश्व विजेता बन जाते.
ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी.
30 सालों तक प्रयास के बाद भी अकबर, प्रताप को बंदी न बना सका. 29 जनवरी 1597 को शिकार दुर्घटना में घायल होने की वजह से प्रताप की मृत्यु हो गई. प्रताप की मौत की खबर सुनकर अकबर भी रो पड़ा था.
हल्दी घाटी के युद्ध में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक के मघ्य युद्ध हुआ |
महाराणा प्रताप ने मरने से पहले अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे ।
महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं | इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है|
मेवाड़ के आदिवासी भील समाज महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और महाराणा भी बिना भेदभाव के उसके साथ रहते थे |मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था ।मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं, तो दूसरी तरफ भील |
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक हाथी के सिर पर पैर रख दिया था और घायल प्रताप को लेकर 26 फीट लंबे नाले के ऊपर से कूद गया था. पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है, जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई , चेतक घोड़े का हल्दीघाटी के मैदान में मंदिर भी बना हुआ है |
महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी, जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे । जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई। आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |
चेतक घोडा भी बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी, ताकि दुश्मन के हाथियों को भ्रमित किया जा सके , हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|
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